भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखो तो हमदर्द बड़े हैं / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:30, 14 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखो तो हमदर्द बड़े हैं
लोग मगर ये सर्द बड़े हैं
हर मौसम की रम्ज़ को जानें
वो पत्ते जो ज़र्द बड़े हैं
हम मंज़िल पर क्या ठहरेंगे
हम आवारा-गर्द बड़े हैं
पोंछ लिये हैं आंख से आंसू
लेकिन दिल में दर्द बड़े हैं
दुन्या एक दुखों का घर है
दुन्या में दुख दर्द बड़े हैं
आ निकले हैं उस की गली में
हम भी कूचा-गर्द बड़े हैं