भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखो मुझे कि जलवाए-रब्बे क़दीर हूँ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 14 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखो मुझे कि जल्वा-ए-रब्बे क़दीर हूँ
मुझ से मिलो कि शख्स बड़ा बे-नज़ीर हूँ
हिन्दू भी चाहते हैं मुसिलमान भी मुझे
शायद मैं कोई संत हूँ कोई फ़क़ीर हूँ
उर्दू है मेरा नाम अज़ीज़े-जहां हूँ मैं
मक़बूले-ख़ासे-आम हूँ रौशन ज़मीर हूँ
मुझ को नहीं है कोई ज़रो-माल की कमी
दरगाह वो अज़ीम है जिस का फ़क़ीर हूँ
आइद न मुझ पे कीजिये इल्ज़ामे-मुफ़लिसी
मैं बादशाहे वक़्त हूँ दिल का अमीर हूँ
खेंची गई है साथ मिरे इक बड़ी लकीर
'रहबर' इसी लिए तो मैं छोटी लकीर हूँ।