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नये देस का रंग नया था / नासिर काज़मी

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नये देस का रंग नया था
धरती से आखश मिला था

दूर से दरियाओं का सोना
हरे समंदर में गिरता था

हंसता पानी, रोता पानी
मुझको आवाज़ें देता था

तेरे ध्यान की कश्ती लेकर
मैंने दरिया पर किया था

छोटी रात, सफ़र लम्बा था
मैं इक बस्ती में उतरा था

सुरमा नदी के घाट पे उस दिन
जाड़े का पहला मेला था

बारह सखियों का इक झुरमुट
सेज पे चक्कर काट रहा था

नई नकोर कुंवारी कलियाँ
कोरा बदन, कोरा चोला था

देख के जोबन की फुलवारी
सूरजमुखी का फूल खिला था

माथे पर सोने का झूमर
चिंगारी की तरह उड़ता था

बाली राधा, बाला मोहन
ऐसा नाच कहां देखा था

कुछ यादें, कुछ ख़ुशबू लेकर
मैं उस बस्ती से निकला था