भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोते रोते कौन हंसा था / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 14 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=पह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रोते रोते कौन हंसा था
बारिश में सूरज निकला था
चलते हुए आँधी आई थी
रस्ते में बादल बरसा था
हम जब क़स्बे में उतरे थे
सूरज कब का डूब चुका था
कभी कभी बिजली हंसती थी
कहीं कहीं छींटा पड़ता था
तेरे साथ तिरे हमराही
मेरे साथ मिरा रस्ता था
रंज तो है लेकिन ये खुशी है
अब के सफ़र तिरे साथ किया था।