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शहीद की समाधि / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढ़ाते जाना!
सोया होगा यहीं कहीं कोई शहीद मस्ताना!

यहीं कहीं मिट्टी में है अरमान तुम्हारा सोया।
खुले गगन के नीचे साधक बड़े प्यार से खोया
सोया है जिसने अँगारों पर अंकुर पनपाया
और लपट पर जिसने कर दी अपने तन की छाया।
यह समाधि है उस शहीद की जो न कभी मरता है
यह निशान है लाल खून का जो न कभी भरता है।
यह सोना है जो तपने पर खड़ा उतर जाता है
इसे झाँकने आसमान का सूरज नित आता है।

ध्येय धार पर तलवारों की कदम बढ़ाते जाना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढ़ाते जाना!

ईसा को शूली देकर जग शीश झुका पाता है
युग का पूजक ही युगवालों की ठोकर खाता है।
ठोकर खा कर दीवाने का प्यार उभर आता है
लैला जब तक होश सम्भाले-मजनू मर जाता है।
पड़ा यहीं है तूफानों में दीप जलानेवाला
सागर में पतवार छोड़कर नाव चलाने वाला।
ढूँढ सकोगे? राणा का हिमहास यहीं खोया है
यहीं तुम्हारा गाँधी या सुकरात कहीं सोया है

यह शहीद की चिता! उभारे मन का घाव पुराना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढ़ाते जाना!

'तू मजार की अमर चिरन्तन ज्योतिदायिनी रेखा
या हिम का वह श्रृंग न जिसको झुकते जग ने देखा?'
'मैं बहार का फूल आग का जलता शोला भी हूँ
चढ़ी उमर की लहर धूप की चढ़ती वेला भी हूँ
ठहर! सुनो तो इस समाधि की मिट्टी बोल रही है-
मरो न्याय के लिये ज़हर यदि दुनिया घोल रही है!

जय हो अपने उस राही की-सोया सीना खोले
वह शहीद!-जो मानवता के हित निगलेगा शोले

गाओ! उनके गीत अंत तक है दुहराते गाना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढ़ाते जाना!

फूल चढ़ाते जाना प्यारे! यह शहीद का घर है
जी कर जो था मरा कभी वह मरकर बना अमर है
ओ! अशोक का चक्र पूजकर शान्ति मांगने वाले!
इस समाधि के पास प्राण की पल उलझन सुलझाले!
मत खोजो 'बहुजन हिताय' की परिभाषा प्रस्तर पर
मिली चेतना थी अशोक को किसी की समर लहर पर?
यहाँ नये मानव को नवयुग का अभियान मिलेगा
इसे झुकाओ शीश ज्योति का मधु-वरदान मिलेगा

यहाँ चिता के सीने में भी वह अभिमान मिलेगा
ओ भूले इन्सान! यहीं तुमको भगवान मिलेगा!

गानेवाले! इसे सींचकर स्वर बिखराते जाना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढाते जाना!

कह समाधि पर फूल चढाकर विश्वशान्ति की जय हो!
जय हो जग के शोषित-गण की-महाक्रांति की जय हो!
अरे! वही सच्चा शहीद जो मरकर भी जीता है
नीलकंठ! जो विष का जलता प्याला भी पीता है।
आ रही भीष्म को नींद वाण की शैय्या शरमाती है
रचे जमाना व्यूह वीर की तनी हूई छाती है।
स्वप्न बने साकार न्यायपथ तुम्हें बनाना होगा
हो नूतन निर्माण तुम्हें इस पथ पर आना होगा

सदा शहादत तुम्हें कहेगी पाँव बढ़ाते जाना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढाते जाना!

मिट्टी जब तक नम होती है सूखा पड़ जाता है
जब तक आये फूल पेड़ का पत्ता झड़ जाता है
जब तक बिखरे गीत वीणा का तार उतर जाता है
होती है पहचान प्यार का देश बिछुड़ जाता है।
आने लगी बहार-तड़पकर मर जाता है माली-
फूल गिराती चरण-चिह्न पर झुक-झुक टहनी-डाली
मधुशाला के चोर मधुप का देखो कंकर खाना
मिट जाये यदि मधुप लाश पर जग का फूल सजाना।

नादानों का काम भूल पर भूल बढ़ाते जाना!
जानेवाले! इस समाधि पर फूल चढाते जाना!