भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शबनम-आलूद पलक याद आई / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:29, 18 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=बर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शबनम-आलूद पलक याद आई
गुले-आरिज़ की झलक याद आई

फिर सुलगने लगे यादों के खण्डर
फिर कोई ताके-खुनक याद आई

कभी जुल्फों की घटा ने घेरा
कभी आंखों की चमक याद आई

फिर किसी ध्यान ने डेरे डाले
कोई आवारा महक याद आई

फिर कोई नग़मा गुलूगीर हुआ
कोई बेनाम कसक याद आई

ज़र्रे फिर माइले-रम हैं 'नासिर'
फिर उन्हें सैरे-फ़लक याद आई।