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अहले-दिल आंख जिधर खोलेंगे / नासिर काज़मी
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अहले-दिल आंख जिधर खोलेंगे
इक दबिस्ताने-हुनर खोलेंगे
वहीं रुक जाएंगे तारों के क़दम
हम जहां रख़्ते-सफ़र खोलेंगे
बेहरे-ईजाद खतरनाक सही
हम ही अब उसका भँवर खोलेंगे
कुंज में बैठे हैं चुप-चाप तयूर
बर्फ पिघलेगी तो पर खोलेंगे
आज की रात न सोना यारो
आज हम सातवां दर खोलेंगे।