भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुज़रे हुए लम्हों का कोई तो निशां छोड़ो / ईश्वरदत्त अंजुम

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:14, 20 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वरदत्त अंजुम |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
गुज़रे हुए लम्हों का कोई तो निशां छोड़ो
ख़ुशबू में जो डूबा हो इक ऐसा समां छोड़ो

हर दिल में खुशी भर दो हर शख्स यहां चहके
ये प्यार का मौसम है नफ़रत की ज़बां छोड़ो

हर शय पे बहार आये गुल बूटे निखर जाये
जिस राह से तुम गुज़रो खुशियों का जहां छोड़ो

टूटे हुए तारों में अब और न तुम उलझो
मिल पाएंगे फिर हम तुम ये वहमो-गुमां छोड़ो

हर दिल में उतर जाये हर दिल में समा जाये
दुनिया में तुम ऐ अंजुम वो तर्ज़े-बयां छोड़ो।