भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात ऐसे गुज़ारता है कोई / शोभा कुक्कल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 22 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शोभा कुक्कल |अनुवादक= |संग्रह=रहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात ऐसे गुज़ारता है कोई
चांद तारे निहारता है कोई

ऐ मेरे श्याम ऐ मिरे काहन
आ कि तुझको पुकारता है कोई

कोई बेमौत मर रहा है कहीं
अपनी ज़ुल्फें संवारता है कोई

बंद आंखों से काम लेता है
यूँ किसी को निहारता है कोई

वो हो मंज़ूर या कि न मंज़ूर
अर्ज़ अपनी गुज़ारता है कोई

जीत जाये कोई बस इस ख़ातिर
बाज़ीए-इश्क़ हारता है कोई।