भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इराक / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 23 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने कब

आँखें होंगी ज्योतिहीन

और पोरों से छू-छूकर

बताया करूंगा चेहरे

बारूदी हैं या तेज़ाब धुले


कब

दूर-दूर बैठी गिद्धों की जमात

इतने पास आ सकेगी

कि खा सकेगी

और टटोल-टटोल जान सकूंगा मैं

उनकी गरदन उनकी चोंच

और भर सकूंगा भीतर

तोतली वास वसंत की।