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तुम साथ हो तो ज़िंदा हैं ख्वाहिशें सफ़र की / अशोक कुमार पाण्डेय

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(एक)

आहिस्ता चलो
घुटने आँखें नहीं होते
कि उम्र के साथ बढती जाय उनकी नमी

चलो, एक और सफ़र पर चलते हैं आज की रात
मैं थामता हूँ तुम्हारी उंगलियाँ, तुम मेरी निगाहें थाम लो
कन्धों पर लाद ली है मैंने तुम्हारे हिस्से की उत्कंठा
तुम अपने कन्धों पर मेरे हिस्से का उल्लास लाद लो

पहन लो मेरा भरोसा चप्पलों की तरह
मैंने ओढ़ ली है तुम्हारे प्रेम की शाल

चलो, किसी समुद्र की रेत पर चलते हैं थोड़ी दूर
लौटते हुए लिए चलेंगे अपने निशाँ
यादों का बक्सा लौटते ही माँगेगा उपहार

आज तुम मत सुनाना अपने दफ्तर के किस्से
मैं अपनी कोई कविता नहीं सुनाऊंगा ... वादा
बिटिया के पुराने दस्ताने निकाल लो उस बक्से में से
मैंने रख ली है उसकी एक पुरानी बांसुरी
चलो, वहां से थोड़ी ठंढ और थोड़े सुर लिए लौटेंगे

चलो, हम बातें करेंगे उन दिनों की जब प्रेम था और हम नहीं थे
हम अपने प्रेम के किस्से सुनायेंगे चाँद समेटने आई सीपियों को
हम मछलियों को अपने अपने आँसुओं का नमक दे आयेंगे
लहरों के लिए रख लो थोड़े से सपने, देखो अब भी पड़े होंगे किसी दराज में

चलो, आहिस्ता चलो
लेकिन थोड़ा जल्दी
देखो माथे पर चढ़ आया हैं चाँद
और सुबह तक लौट आना है हमें.


(दो)

तुम्हारे बालों में कुछ हंस उतर आये हैं उत्तर दिशा के
मेरे बालों के बीच उगी वीरानी को मोतियों से भर दो

आओ आज पढ़ें चेहरों पर उग आईं
अजानी लिपि में लिखी उम्र की इबारतें

पुरानी कोई डायरी निकाल लाओ
या मैं ढूंढता हूँ प्रेमपत्रों की पोटली
तुमने रख तो दी थी न संभाल के?

घर का हिसाब रख दो एक ओर
खर्च की चिंताएं किसी किताब के बीच छिपा रख दो आलमारी में बहुत ऊपर
पिता की सारी दवाएं ला कर रख दी हैं
बिटिया की फीस जमा कर दी है इस महीने भी वक़्त पर
सब हो गया है...अवकाश के क्षण हैं ये

हरीतिमा उसी तरह है धरती पर
जैसी पंद्रह साल पहले थी
सूरज उतना ही गर्म, उतना ही मद्धम
हवाओं में जो ये थोड़ी सी नमी है
किसी पुराने समय से चली आई है हमारे लिए हमारी ही देहगंध लिये







(तीन )
 

(समंदर के पास खड़े प्रिय अनुज पवन और स्टेफनी की तस्वीर देखते हुए)

देखो
उनके होने से
कितना नीला हो गया है समंदर

उनके होने से
कितना मृदुल लग रहा है सूर्य
बादलों में कितना प्रेम भर गया है
और बलुई धरती जैसे चांदी से भर गयी है
 
देखो
उनके होने से
पेड़ों पर उग आई है ज़िन्दगी किस कदर
युद्धपोतों ने पहन लिए हैं श्वेत वसन
पंक्षी उड़ना भूल ठहर गए हैं आसमान में

देखो
उनकी आँखें देखो
इनमें दुनिया का सबसे पवित्र जल बह रहा है

साथ देखते हुए देखो
एक समन्दर भर गया है हमारे भीतर