भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मॅाग / ज्ञान प्रकाश सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:26, 2 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?

मंत्री जी से जब पूछा, ये कैसी धुँध आई
बोले, लोकतान्त्रिक है, सब पर है छाई,
अमीर और ग़रीब में, फ़र्क नहीं करती
इसीलिए तो हमने एनसीआर में बुलाया।
ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?

प्रकृति से जब पूछा,तो लाल करके चेहरा
क्रोध से वह बोली, कुछ हाथ नहीं मेरा,
अपना गिरेबाँ देखो, सब काम है तुम्हारा
क्यों मुझसे पूछते हो,ये कैसा धुआँ छाया।
ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?

कुछ याद नहीं आती, है इंद्र धनुष रचना
नील गगन दिखना, है लगने लगा सपना,
जहरीली हवा फैली,प्रदूषण वितान ताना
था स्वच्छ वायुमण्डल, दूषित इसे बनाया।
ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?

था पर्यावरण निर्मल,जोखिम में बदल डाला
पानी बनाया गंदला,अम्बर को किया धुँधला,
हम दोषी हैं प्रकृति के, यह काम है हमारा
आधुनिक अंधी दौड़ ने, इसे जटिल बनाया।
ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?