दो / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
हमारा उस दिन का यह देश
वीर रोओ आँसू है शेष
बताता हँस-हँस कर इतिहास! अश्रुभर पढ़ने बैठे आज
पाण्डु पुत्रों को राजस यज्ञ, चीन तक था जिसका साम्राज्य
यार! अपनी ही सीमा हाय! चीन से बचा न पाये आज
बहादुर लड़े गँवा कर प्राण, किन्तु रह गया अधूरा काज
स्वर्ग में आँसू ढालेंगे शहीद
जीत का बन आए संदेश
उलट दो फिर से वह अध्याय! बढ़ी थी जब कुशान की शान
बौद्ध होने पर पन्ने पलट! लिया था, जब कनिष्क का बाण
चीन के राज कुँवर को पकड़ कर मंगाया था वह भारत वर्ष
गर्व से उस दिन के इठास लिखे थे ये मेरे उत्कर्ष
कहा था तुम लौटो निज देश
बुद्ध का फैलाना संदेश
आज हम चीन के ही संदेश, देश भर में फैलाते रोज
कहाँ वह गई शक्ति ? कहाँ है बाणी में वह ओज
हमीं जड़ आज भुवन में हुए, हमारे ही कटते हों अंग
गौरवान्वित होता था विश्व एक दिन चलकर जिसके संग
वही है भूमि, वही आकाश
वही है मेरा देश