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तेरह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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तुम सहव रहे हो क्यों नौजवान
भारत में ऐसे हुए वीर
आँखे फूटी तन अस्त-व्यस्त, घायल शरीर भी बंधा हुआ
गजनी के काले गृह में था शेर सिंध का सधा हुआ
शब्दों के एक इशारे पर,
बेधा था गोरी का शरीर
यूनानी सेना का नायक सिकंदर सब लायक
वह विश्व विजय को निकला था, अपने हाथों में ले सायक
भारत भूमि पर ही उसके
मर गए सिपाही, झरे तीर
मरहटटा शिवराज शेर की कथा हृदय बलकाती है
मुर्दे उठते जाग समर में याद जभी आ जाती है
हल्दी घाटी से जा पूछो
था को राणा-सा सुधीर