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तीन / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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लो! अखबारों में समाचार छपबाता हूँ
ले गई हृदय चोरी-चोरी
कमसिन, पतली, गोरी-गोरी
कजरारी आंखे, क्या कह दूँ
अनबूझ पहेली सी छोरी
जो उसको पकड़ेगी उसको
इनाम लाख से ऊपर दूँ
ट्रान्जिस्टर और घड़ी दूँगा
चड्ने को एक एम्बेस्डर दूँ

लो! पुलिस तुम्हारे घर तक मैं भिजवाता हूँ

हो जाऊँ बदनाम, मुझे परबाह नहीं
तुम मिलो, सिबा इसके है कोई-चाह नहीं
जब रात अकेली होती है
मेरे कुटिया में सो जाती
तब याद तुम्हारी रह-रह कर
मेरे नींदों को उकसाती
मैं रोज दर्द को कब्रों में दफनाता हूँ
लो! अखबारों में समाचार छपबाता हूँ