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पाँच / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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बैठ कर कोई चिता पर गीत गाता
क्या पता उस पार मेरा
कौन है क्यों मन लुभाता

दहकते अंगार को मैं देखता हूँ
चीखते संसार को मैं देखता हूँ
उठ रहा काला धुआँ चौतरफ
अगिन स्फुर्लिंग बचा ले व्योम
को, जल न जाए जगमगाता
बैठ कर कोई चिता पर गीत गाता

जल गया सब कुछ मगर संगीत है
क्यों हमारी साँस कहती प्रीत है
हार कर मैं डूबने को जा रहा
कौन कहती है उधर से जीत है

जीत! जीवन भर सदा हारा किया
काश! अब भी हार जाता
बैठ कर कोई चिता पर गीत गाता

हारने वाले हमारे साथ आओ
महज छोटी जीत पर मत गीत गाओ
हार है गतिमान, जीत विराम है
हार के अंजाम को दिल से लगाओ

हार है पथ की सुबह तो जीत मंजिल
मैं जिसे बस अंत पाता
बैठ कर कोई चिता पर गीत गाता