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चलो चलें अब शिक्षा मंदिर (कविता) / नंदेश निर्मल
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गाँव-गाँव औ शहर-शहर में
जन शिक्षा की धूम मची है
महिला भी हो घर से बाहर
शिक्षित बनने निकाल पड़ी है।
गाँव-गाँव औ शहर-शहर में
जन शिक्षा की धूम मची है
यह अभियान सफल जब होगा
कोई मूढ़ नहीं जब होगा
पढे-लिखे जागे समाज से
विपदा हरदम दूर रही है।
गाँव-गाँव औ शहर-शहर में
जन शिक्षा की धूम मची है
तेज धूप हो या आँधी हो
‘चलो चलें अब शिक्षा मंदिर’
शिक्षा वह अमृत धारा है
जिस मै नैया पार लगी है।
गाँव-गाँव औ शहर-शहर में
जन शिक्षा की धूम मची है
शिक्षा से सज-धज कर कोई
जब घर से परदेश निकलता
प्रेम और आदर वह पाता
कठिन राह आसान बनी है।
गाँव-गाँव औ शहर-शहर में
जन शिक्षा की धूम मची है