भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जनशिक्षा और पदाधिकारी / नंदेश निर्मल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:35, 3 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदेश निर्मल |अनुवादक= |संग्रह=चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है
तब कागज की नैया चढ़ कर
कोई लक्ष्य नहीं मारता है।

पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।

आज खगड़िया की जनशिक्षा
तम से लड़ने निकल पड़ी है
हर पंचायत का विद्यालय
अनुपम सा भारत गढ़ता है।

पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।

कर्मवीर अपने मुखिया हैं
कुर्सी उनसे मुखर हुई है
जब चौकस अगवाई है तो
चहूँदिश चेतन ही दिखता है
 

पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।

राह सजाना, उसे सीचना
हरित रहे यह बात सोचना
सौ कन्धा हो साथ चले तो
मंगलमय सुर वह रचता है।

पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।

शिक्षित बनने में अभिमत हों
हमें आज यह तय करना है
हाथ-हाथ में हो मशाल जब
कभी नहीं सूरज ढलता है।