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हम बुरे हैं / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
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हम बुरे हैं
क्योंकि हम आदर्श के संसार में
रहते रहे हैं!
प्यार को ही ज़िन्दगी का आसरा
कहते रहे हैं।
क्योंकि भाता है नहीं हमको किसी
मजबूर के आँसू निरख कर मुस्करा देना,
क्योंकि आता है नहीं हमको कदाचित्
आदमी को आदमीयत की सज़ा देना,
सिर्फ हम तो भूख से, अन्याय से
हो साथ हर निरुपाय के
ऐ दोस्त, लड़ना चाहते हैं,
विश्व के हर आदमी के होंठ पर
मुस्कान के नगरत्न जड़ना चाहते हैं,
जिन्दगी नूतन यहाँ बस जाये फिर से
इसलिए हम खुद उजड़ना चाहते हैं!
किन्तु दुनिया के लिए ये गीत
जो हम गुनगुनाते हैं
कदाचित् बेसुरे हैं!
हम बुरे हैं!