भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाई / भील

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> ऊँचो माळो रे कम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊँचो माळो रे कमल भाई रे,
टोंगल्यो बूडन्ती ज्वार।।
काचा रे सूत की कमल भाई की गोफण,
सुशीला होर्या टोवण जाई।।
हरमी-धरमी का होर्या उड़ी जाजो,
न पापी को खाजो सगळो खेत।।

-गीत गाने वाली ने स्वयं के भाई के नाम से गाया है कि भाई का महल ऊँचा है, ज्वार घुटने के ऊपर है। कच्चे सूत की भाई की गोफन बनाई हुई है। सुशीला भाभी तोते उड़ाने जाती है। धरमी का खेत छोड़कर पापी का सारा खेत चुग लेना।