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मान उतारने का गीत / 1 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सेली माता ने कोरा कागद देय भेज्या,
कि मानवाला केतरिक दूर।
सेली माता ने कोरा कागद देय भेज्या,
कि मानवाला केतरिक दूर।
आई वा आवाड़ माता आइ रहया,
बोकड़ा की करूं वो सेमान।
सेली माता नी साकड़ी सयरी ते,
डोलता आवे ससवार।
काई वाटे ली वो राजल बेटी अवगढ़ मान,
बेटा सारू ली वो माय अवगढ़ मान।
भूल्या-चुक्या वो माता माफ करजो,
बोकड़ा की छूट्या वो हामु मान।
बोकड़ा वाला रे भाई भारूड़।
इनि वाटे बोकड़ा झुणि लावे।
बोकड़ा नी लोभी मारी सेली माता,
तारा बोकड़ा जासे पयंताल।
सेली माता ने कोरा कागद देय भेज्या,
कि मानवाला केतरिक दूर।

-शीतला माता ने कोरा कागद पहुँचाया है कि मन्नत देने वाले कितनी दूर हैं। आ रहा हूंँ अभी, वो माता! आ रहा हूँ। बकरा लाने की तैयारी कर रहा हूँ। शीतला माता का रास्ता सँकरा है इसलिए घोड़े लड़खड़ाते आ रहे हैं। राजल बेटी ऐसी औघड़ मान किसलिए ली? पुत्र प्राप्ति हेतु ली। वो माता! भूल-चूक माफ करना। माता बकरे की मान ली थी, वह दे दी है। हे भारुड़ भाई बकरे वाले! इस रास्ते बकरे मत लाना। मेरी शीतला माता बकरे की लोभी हैं। तेरे बकरे पाताल में चले जायेंगे।