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चवरी गीत / 2 / भील
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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
वधू पक्ष- सोनानि पालकि मा बठि वो मारी बेनी।
सोनानी पालकी वासे।
कुकड़ डालगा मा बठोरे, डाहेला लाड़ा,
कुकड़ डालगो कटके।
वधू पक्ष- सोनानि पालकि मा बठो रे बेना,
सोनानी पालकी वासे।
कुकड़ डालगा मा बठोरे, डाहेला लाड़ा,
कुकड़ डालगो कटके।
-चावरी में दूल्हा-दुल्हन बैठे हैं, दोनों पक्ष की महिलाएँ गीत गाती हैं। वधू पक्ष की महिलाएँ कहती हैं- दुल्हन सोने की पालकी में बैठी है, सोने की पालकी खुशबू दे रही है। बूढ़ा दूल्हा मुर्गे-मुर्गी के डाले (पिंजरा) में बैठा है, पिंजरा कटकटा रहा है। वर पक्ष की ओर से कहा गया है- दूल्हा सोने की पालकी में बैठा है, पालकी खुशबू दे रही है, बूढ़ी दुल्हन मुर्गे-मुर्गी के डाले में बैठी है और डालगा (पिंजरा) कटकटा रहा है।