भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवाह गीत / 3 / भील

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> मारे अंगठे विछु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मारे अंगठे विछु झूल्यो राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारे अंगठे विछु झूल्यो राज, आज की चालण छूड़ दे।
नानड़ियो विछु झूल्यो राज, आज चालण छूड़दे।
नानड़ियो विछु झूल्यो राज, आज चालण छूड़दे।
मारा पील्ये विछु चढ़ियो राज, आज चालण छूड़दे।
मारा पील्ये विछु चढ़ियो राज, आज चालण छूड़दे।
मारी सातल्ए विछु चढ़ियो राज, आज की चालण छूड़दे।
मारी कमर विछु चढ़ियो राज, आज की चालण छूड़दे।
मारी कमर विछु चढ़ियो राज, आज की चालण छूड़दे।
मारी छाल्ए विछु चढ़ियो राज, आज की चालण छूड़दे।
नानड़ियो विछु झूल्यो राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो जेठ उतारे मारी जेठाणी कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो जेठ उतारे मारी जेठाणी कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो देवर उतारे मारी देवराणी कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो देवर उतारे मारी देवराणी कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो सेसरो उतारे मारी सासु कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारो सेसरो उतारे मारी सासु कुरकाए राज, आज की चालण छूड़ दे।
मारे अंगठे विछु झूल्यो राज, आज की चालण छूड़ दे।

-महिला अपने पति से कहती है कि मेरे अँगूठे में बिच्छू ने काटा है। आज का चलना छोड़ दो। मेरी पिंडली तक बिच्छू चढ़ गया है, आज का चलना छोड़ दो। मेरी जंघा तक बिच्छू चढ़ गया है, आज का चलना छोड़ दो। मेरी कमर तक बिच्छू चढ़ गया है, आज का चलना छोड़ दो। मेरी छाती तक बिच्छू चढ़ गया है, आज का चलना छोड़ दो। मेरे जेठ उतारें तो जेठानी नाराज होती हैं, आज का चलना छोड़ दो। मेरा देवर उतारें तो देवरानी नाराज होती है, आज का चलना छोड़ दो। मेरे ससुर उतारते हैं तो सासू नाराज होती है, आज का चलना छोड़ दो।