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बारात के रास्ते का गीत / 3 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आंबा मा मेलो भेलो हयो रे केसरिया लाल।
बाष्ट्या ऊपर जोबन झोला खाय रे केसरिया लाल।
आमल्या मा मेलो भेलो हयो रे केसरिया लाल।
हार ऊपर जोबन झोला खाय रे केसरिया लाल।
जांबुड़ा मा मेलो भेलो हयो रे केसरिया लाल।
तागल्या ऊपर जोबन झोला खाय रे केसरिया लाल।
सिंद्यां मा मेलो भेलो हयो रे केसरिया लाल।
लंगर्या ऊपर जोबन झोला खाय रे केसरिया लाल।

- बारात जा रही है, छायादार वृक्षों को देखकर रुकते हैं। सभी एकत्रित हो जाते हैं वहाँ गीत गाते हैं। सभी महिला-पुरुष गहनों से सजे हुए हैं।

आम के कुँज में मेला लग गया है जो केसरिया और लाल है। बाष्ट्या पर जवानी झूम रही है। इमली के वृक्षों में मेला लगा है जो केसरिया और लाल है। हार पर जवानी झूम रही है। जामुन के पेड़ों पर मेला लगा है केसरिया लाल। तागली पर जवानी झूम रही है। सिंदी के वृक्षों में मेला लगा है केसरिया लाल, लंगर पर जवानी झूम रही है।

बारात दुल्हन के गाँव के बिल्कुल पास पहुँच गई, जहाँ से बारात की हल चल गाँव में सुनाई पड़ रही है, वहाँ गीत गाया जाता है। यह ‘निहाली गीत’ है।