भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विवाह गीत / 16 / भील
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> अतरि जुवानिमा ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
अतरि जुवानिमा लेहर्यो फुंदो, धड़े मेलिन् नाचो वो।
नि माने ते मा माने लहर्यो फुंदो, मेलिन नाचों वो।
फुंदा वाली धन्लि मारि उभिकरो, फुंद्याली दवड़ाउंवो।
नि माने ते मा माने उभिकारो, फुंद्याली दवड़ाउंवो।
अतरि जुवान मा लेहर्यो फुंदो, धड़े मेलिन् नाचो वो।
- दुल्हन के आँगन में महिलाएँ नाचते हुए गा रही हैं-
इतनी जवानी मंे चोटी का लहर्या फंुदा एक तरफ करके नाच रही हूँ। न माने तो मत माने। मेरी कमर में फुंदे लगे हैं, उसे खड़ी करके और दौड़ाऊँ। मन न माने तो खड़ी करूँ और दौड़ाऊँ।