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भजन / 2 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

खेती खेड़ो हरि नाम की, तेमा मिलसे से लाभ॥
पाप ना पालवा कटावजो, धरमी हळे अपार॥
एची खेचिन बायरा लावजो, खेती कंचन थाय॥
खेती खेड़ो रे हरि नाम की, तेमा मिलसे से लाभ॥
ओम-सोम दोउ वाळ दिया, हाँरे सुरता रास लगाय॥
रास पिराणा धरिन हातमा,
हाँ रे सूरा दिया ललकार, खेती खेड़ो रे हरि नाम की,
तेमा मिलसे रे लाभ॥
सत कारे माळा रोपजो, धरमी पयड़ी बंधाव॥
ग्यान का गोळा चलावणा,
हाँ रे पंछी उड़-उड़ जाय, खेती खेड़ो रे हरि नाम की॥
ववन वकर जुपाड़जो, सोवन सरतो बंदाय,
कुल तारण बीज रे बोवणा,
हाँ रे खेती लटा-लुम थाय, खेती खेड़ो रे हरि नाम की॥
दावण आइ रे दयाल की, पाछी फेरी नि जाय॥
दास कबिर की रे विणती न रे, लज्जा राखो रे भगवान॥
खेती खेड़ो रे हरी नाम की, तेमा मिलसे रे लाभ॥
खेती खेड़ो रे हरी नाम की।

-भगवान के नाम की खेती करो। भगवान का भजन करो, उसमें लाभ मिलेगा।

इस खेती में पाप के जो वृक्ष उगे हैं, उन्हें खुदवाओ। धर्म खूब करो और उन वृक्षों को खींच-खाँचकर बाहर निकालो, जिनसे तुम्हारे जीवनरूपी खेती का सौन्दर्य बढे़गा। इसके बाद तुम्हारी खेती सोना ही जायेगी।