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फगवा माँगन का गीत / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तू बोल रे कोरा कागद, बोल रे होळि वाळा॥
नारी बायर की घूगर माळ लीगया होळिा वाळा॥
तू बोल रे केसरिया भइया, बायर को रखवाळो॥
थारी बायर के घूगर माळा, तोकि गया होळि वाळा॥
तू बोल रे कोरा कागद बोल रे हाळि वाळा॥
तू बोल रे रणछोड़ भइया, तू बायर को रखवाळो॥
थारी बायर के घूगर माळा, तोकि गया होळि वाळा॥
होळी से झोळी बांध राति चुनरिया॥
गांग्या रे थारी नार रात चुनरिया॥
गेरिया में रमती मेल, राती चुनरिया॥
कुण-कुण क कयगा बाप, राती चुनरिया॥
मांगिया क कयगा बाप, राती चुनरिया॥
गौरा क कयसे माय, राती चुनरिया॥
गौरा क कयसे माय, राती चुनरिया॥
सुरेश भइया क हाट म देख्यो माथऽ कड़ब् को भारो॥

- तू कोरे कागज बोल! होली खेलने वाले बोल! (जिस व्यक्ति से फगवा माँगते हैं महिलाएँ उसे घेर लेती हैं और फगवे में जो रुपये लेना है उससे कबूल करवाती हैं कि बोल कितने रुपये देगा और गीत गाती जाी हैं। वह रुपये देना कबूल करता है तब उसे छोड़ती हैं।) कितने रुपये देगा? तेरी पत्नी की घूगरमाल होली वाले ले गये।

आगे नाम लेकर कहती हैं कि- केसरिया! तू पत्नी की रखवाली करता है और तेरी पत्नी की घूगरमाला होली खेलेने वाले उठाकर ले गये। आगे दूसरे व्यक्ति को पकड़कर घेरती हैं और गीत में कहती हैं- अरे रणछोड़! तू पत्नी का रखवाला है तेरी पत्नी की घूगरमाला होली वाले उठा ले गये।

माँगिया! तेरी पत्नी लाल चूनरी वाली है। लाल चूनर से होली का झूला बाँध। गेंरिया (होली खेलने वालों में) लाल चूनरी वाली को खेलने भेज। गेंरिया में पेट रह गया, लाल चूनरी वाली का, उसका बालक किस-किस को पिता कहेगा? माँगिया को पिता कहेगा या गौरां को। बेटा लाल चूनरी वाली का।

सुरेश को कड़बी का भारा लेकर देखा (सुरेश भी होली खेलने वालों में है, उसे घेरकर कहा गया है)। भारा नहीं चढ़ा तो रोते हुए देखा।

इस प्रकार होली खेलते हुए फगवा माँगती है। हँसी-मजाक के रूप में ये गीत गाये जाते हैं, कोई बुरा भी नहीं मानता है, खुश होते हैं, क्योंकि बुरा न मानो होली है।