भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोक गीत / 8 / भील
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> नीलो सो नीलो का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
नीलो सो नीलो काइ धुंधे राणी।
हुर्या नी नीलो पांख धुंधे राणी।
कालो चो कालो काइ धुंधे राणी।
कागला नी पांखे वो धंुधे राणी।
धवलो चो धवलो काइ धुंधे राणी।
बगल्या नी धवलो पांख धंुधे राणी।
-धंुधा रानी को सम्बोधित कर गीत है। प्रश्नोत्तर के रूप में इस गीत में कहा गया
है कि- नीला-नीला क्या है? उत्तर है तोते के पंख। काला-काला क्या है? कौवे के
पंख। सफेद-सफेद क्या है? बगुला के पंख।