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मृत्यु गीत / 7 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टेक- अरे थारो बहुत दिन म आयो दाव,
    म्हारा हंसा समली न चौपट खेल रे।

चौक-1 अरे चोपट मांडि सान मेरे हंसा खेलर्यो
    घड़ि चार रे, अरे हंसा खेलर्यो घड़ी चार रे,
    समली न चोपट खेलो मेरे हंसा, जो युग मांडिया को दाव
    म्हारा हंसा समली न चोपट खेल।

चौक-2 चार खाणी की चोपट, बणी रे हंसा चौरासी
    घर को यो दाव रे, अरे हंसा चौरासी घर को यो दाव रे,
    अरे जीत तो सुर पुर मरे जासे
    नहिं तो फिर चौरासी म जाय, म्हारा हंसा समली न खेल

चौक-3 चौरासी घर की चौरासी सार हंसा ब्रह्मा न फासो यो डालियो रे,
    अरे हंसा ब्रह्मा ने यो फासो डालियो रे,
    सम्हली ने सार चलो रे मेरे हंसा
    यो ताकीर्यो यमराज मेरे हंसा, समली न चोपट खेल रे,
    अरे यारो बहुत दिन म दाव आयो रे, समली न चोपट खेल।

छाप- कहे कबीरा सुणो धरमदास ये पंथ हे निरवाणी रे
    यहि रे पंथ की करो रे परीक्षा, थारो हांसो गये सतलोक
    मेरे हंसा समली न चोपट खेल।

- अरे मानव! चौरासी लाख योनियों के बाद तुझे यह मानव जन्म प्राप्त हुआ है,
यह अवसर तुझे बहुत वर्षों बाद प्राप्त हुआ है। इस पवित्र योनी में बहुत सम्हलकर
चौपड़ खेल, मतलब यह है कि इस काया पर दाग मत लगने दे।

अरे मानव! छान में (बरामदे में) चौपड़ बिछी है, चार घड़ी खेल रहा है। यह संसार
अल्प समय के लिए मिला है, इसमें सम्हलकर खेलो, अगर चूक गए तो अवसर चूक
जाओगे। अर्थात् भक्ति कर अच्छे कार्य करो, इस काया पर कलंक न लगने दो। चार
खानों की चौपड़ खेलने की चौकड़ी बनी है, उसमें चौरासी घर हैं। अरे! जीत गया तो
स्वर्ग में जायेगा और हार गया तो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा, इससे
तू सम्हलकर चल। चौपड़ में चौरासी घर हैं, चौरासी सार हैं। ब्रह्माजी ने यह पासा डाला
है। सम्हलकर सार चलो यमराज ताक रहा है। मानव बहुत दिन में अवसर तेरे हाथ आया
है। चूक गया तो यमराज ले जायेगा और नरक में डालेगा।

कबीरदासजी कहते हैं- धरमदास सुनो! यह पंच निरवाणी है, इस पंथ की परीक्षा करो, तेरा
हंसा सतलोक में गया, हंसा सम्हलकर खेलो।