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मृत्यु गीत / 13 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मायारो मोओ जाळ देखन डोलो जियो।
भजियो नहिं भगवान गाफल भूलो जियो।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार दोरो तरनों जियो।
जल ऊंडो सेंसार दोनों तरनों रे हो जी॥
थारे बांदण पचरंग पाग, सेली सोहे जियो।
मोतिड़ा तपे ले ललार, लुणिया लड़के जियो।
जिवड़ा से जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार, आखर मरन्हु जियो।
जल उंडो सेंसार, दोरो तरनू रे हो जी॥
सांवलिया घर नार, मेलां बेटी जियो।
दरपण लेती हाथ मुखड़ो मुखड़ो देखे हो जी।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार नेसे मरणु जियो।
जळ उंडो सेंसार दोरो तरणों रे हो जी॥
आंधळा रे भजले राम, रटले माळा जियो।
सुरता रे भजले राम, रटले माळा जियो।
बोलिया कसन मुरार, बंसी वाळा रे हो जी।
जिवड़ा रे जोइ ने हाल, आखर मरनु जियो।
लोभी सोच विचार नेसे मरणु जियो।
जळ उंडो संेसार दोरो तरणू रे हो जी॥

- इस दुनिया में माया मोह का जाल बहुत बड़ा है। अरे मानव! तू इस जाल में
पड़कर मस्त हो रहा है। मेरा लड़का, मेरा घर, मेरा धन, मेरी पत्नी- ये सब माया
ने जाल बिछा रखा है। और मनुष्य इसी में उलझकर उस कर्ता भगवान को भूल
जाता है और उसका भजन नहीं करता है। अरे जीव! तू यह जानकर चल कि आखिर
मरना तो है। यह धन, पुत्र, पौत्र, पत्नी सब यहीं छूट जायेंगे, कोई साथ नहीं आयेगा।
तू अपने मोक्ष के लिए भी कुछ काम कर अर्थात् भगवान का भजन भी कर। तू यह
विचार कर कि यह संसार रूपी समुद्र बहुत गहरा है, इससे पार उतरना बहुत कठिन है।
बस एक मात्र उपाय है तू भगवान को मत भूल। भजन में मानव को शिक्षा दी है कि -
तू बहुत धनवान हो गया और सिर पर पचरंगी पगड़ी शोभायमान हो रही है, गले में स्वर्ण
की कंठी पहने है। पगड़ी के तिल्लों के मोती झूल रहे हैं और खूब शोभा पा रहा है। अरे
लोभी! तू यह जानकर चल कि आखिर मरना है। यह संसार रूपी समुद्र खूब गहरा है,
इससे पार उतरना यानी मोक्ष प्राप्ति कठिन है। भगवान की भक्ति ही तुझे पार उतार
सकती है।

मानव! तेरे घर में सुन्दर स्त्री है, महल में निवास है, हाथ में दर्पण लेकर अपना मुख निहारती
है। तू सुख-भोग में लिप्त है। तूने कभी विचार किया कि अन्त में मरना है। आगे के लिए
क्या किय? मुक्ति हेतु कुछ किया कि नहीं। अरे! उस भगवान का भजन कर, जो तुझे पार
उतारेगा।

अरे मनुष्य! तू इस माया-मोह में अंधा हो रहा है। भगवान का भजन कर ले, उनके नाम की
माला जप ले। कृष्ण मुरारी बंशीवाले ने भी गीता में उपदेश दिया है कि शुद्ध भाव से मुझमें
मन लगा ली तो मुक्ति हो जायेगी। अरे लोभी! सोच ले, मरना तो है ही और मरकर पार
उतरना कठिन है इसलिए माया-मोह के फंदे से निकलकर भगवान का भजन कर ले। नहीं
तो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।