भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गणेश जी निमंत्रण के गीत / 3 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 6 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKLokRachna |भाषा=राजस्थानी |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> आज बिंदा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज बिंदायक दादाजी घर नोत्यो।
आज गजानंद बाबाजी घर नेत्यो।
दाद्या मायां न्योत जिमाओ जी बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
तो रणत भंवर गरणायौ औ बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
आज बिंदायक काका जी रो नोत्यो।
आज बिंदायक बीरा जी रो नोत्यो।
काकियां-भाभियां न्योत जिमाओ जी बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजे, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
तो रणत भंवर गरणायौ औ बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
आज बिंदायक नाना जी रो नोत्यो।
नानियां-मामियां न्योत जिमाओ जी बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजे, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
तो रण भंवर गरणायौ औ बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
आज बिंदायक फूफाजी रो नोत्यो।
आज गजानंद जीजारी रो नोत्यो।
भूवा-बहना न्योत जिमाओ जी बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।
तो रणत भंवर गरणायौ औ बिंदायक।
किला रै छाजै नौबत बाजै, नौबत बाजे नगाड़ा भी बाजै।