भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टीसन धरि / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:55, 7 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=ककबा करै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सभ केओ
छोड़ियौ
अपन-अपन
हठ।
हठक तारकें
नहि कसियौ
बेसी
कम सेहो
नहि कसियौ
बलू,
सितारक तार जकाँ
मध्यमे
रखियौ
तखने बहरायत
हठसँ
मोहक आ मादक धुन।
जिनगीक रेलगाड़ी
वन-पर्वत
नदी-नाला लाँघि
पहुँचि जयतैक टीसन धरि।