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सूरज जी के गीत / 2 / राजस्थानी
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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
धोला-धोला कांई छे धोला बन कपास, धोला सूरज जी रो।
धोड़लो, हे धोला बहू राणादे रा दांत, ऊगतो।
ऊजास बरणू सिंदूर बरणूं गऊं ए बरणे।
चाली पंछीड़ा मारग चाल्या नेम धरम सब।
साथ सहे, बाबो सा घर बाज्या ढोल।
सहेल्यो ये सुसराजी रे घर आनंद होवे।
राती राती कांई करो ये राती चूड़ा मजीठ।
सूरज जी रो घोड़ा रातो, राता बहू राणा दे।
रा हाथ, ऊगतो उजास आनन्द होवे।
कालो कालो कांई करो रे, काला बन्ना काग, सूरज जी से धाड़।
ये काला बहू राणा दे रा केस, ऊगतो उछाव।
पीलो पीलो कांई करो, पीली चना की दाल।
पीलो सूरज जी रो, घोड़यलो, ये पीलो बहू।
राणा दे रो चीर, ऊगतो ऊछाव।
हरियो हरियो कांई करो, हरियो बन की दूब।
हरियो सूरज जी रो घोड़लो, ये हरियो।
बहू राणा दे री कूखं ऊगतो उछाव आनंद होवे।