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गाली ब्याई जी को / 7 / राजस्थानी
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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बियायां जी वाली यू कियो मैं बांदरा की लेर जाऊंली री भाई।
बांदरो विचारो यूं कियो मार रेबा बेई घर नहीं छै री भाई।
बांदरो बिचारो यूं कियो मार खाबा बेई थाली नहीं छै री भाई।
मार सूबा बेई ढोल्यो नहीं छै री भाई, मार फेरबा न कपड़ा नहीं छै री भाई।
थारी खुशी पड़े तो चाल ज री भाई, थारी मरजी पड़े तो चाल ज री भाई।