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सूची / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
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भिनसार जे पानि गंगामे रहैत छैक
वैह पानि सँझ धरि नहि रहि जाइत छैक
ओ आगाँ बाढ़ि जाइत छैक।
भिनसर जे तारागण सूतल रहै अछि
निद्रामे लीन भऽ
साँझ धरि घर घुरि अबैत अछि।
बढ़नाइ
जगनाइ
सृजनशील प्रकृति अछि
आ लोकक खूबी सेहो।