भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नपना / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:41, 12 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=ककबा करै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सभ दिन
अहाँ हमरा संग रहलहुँ
कखनो प्रेम
कखनो झंझटि करैत रहलहुँ।
लोकक बनाओल प्रेमक परिभाषामे
नहि अटलहुँ
संसारक सभटा नपना
अहाँकें नपबामे
छोट लागल हमरा।