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अगस्त के बादल / सुरेन्द्र स्निग्ध

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ऊँची
विशाल
हरी-भरी पहाड़ियों के
चौड़े कन्धे पर
शरारती बच्चों की तरह
लदे हुए हैं
अगस्त के बादल

दूध से भरे
भारी थन से
या चाँदनी से लबालब कटोरे से
छलक-छलक रहे हैं
अगस्त के बादल

मेरे मन मस्तिष्क में
तुम्हारी याद की तरह सघन
और बरस जाने को आकुल
आतुर

घिर रहे हैं
मन मिजाज़ पर
अगस्त के बादल।