भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंदा मामा / निशान्त जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:02, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त जैन |अनुवादक= |संग्रह=शाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंदा मामा बड़े सयाने
मंद-मंद मुसकाते हैं,
जब भी देखो खड़े-खड़े
सुंदरता पर इठलाते हैं।
ये क्या चक्कर कभी तो तुम
होते हो पूरे बड़े-बड़े,
और कभी तुम छोड़ सितारे
हो जाते हो भाग खड़े।
घटते-बढ़ते रहते हो तुम
यह कैसा गड़बड़झाला,
बनते पतलू राम कभी तो
कभी बने मोटे लाला।
मामा हैं नटखट शरारती
इनके खेल निराले,
आज समझ में आया मुझको
मामा हैं मतवाले।