भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महाभारत के कुछ सबक / शिवराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धृतराष्ट्रों को
दुर्योधनों की
वैसी ही जरूरत होती है
जैसी कृष्णों को
अर्जुनों की
सत्ता की प्रतिबद्धता हो या निर्भरता
भीष्मों की भी वैसी ही
दुर्गति होती है
जैसी द्रोणाचार्यों की
अभिमन्यु
घेर कर ही मारे जाते हैं सदा
सदैव छले जाते हैं
कर्ण, एकलव्य और बर्बरीक
सत्ता पौरूष की हो या पूँजी की
कुन्तियाँ, गांधारी, राधाएँ और द्रोपदियाँ
समस्त पत्नियाँ, समस्त प्रेयसियाँ, समस्त स्त्रियाँ
होती हैं अभिशप्त
न्याय और सत्य
सिर्फ़ झंड़े पर लिखे होते हैं
लड़े जाते हैं सभी युद्ध
स्वार्थ और सत्ता के लिए
सभी पक्षों के होते हैं
अलग-अलग न्याय, अलग-अलग सत्य।