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पद / 2 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि
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छोड़ि कुल कानि और आनि गुरुलोगन की,
जीवन सु एक निज जाति हित मानी है।
दरस उपासा प्रेम-रस की पियासी वाके,
पद की सुदासी दया-दीठि की बिकानी है॥
श्रीमुख-मयंक की चकोरी ये सुखोरी बीच,
ब्रज की फिरति है ह्वै भोरी दुख सानी है।
जिन्हें अतिमानी चख-पूतरी सी जानी,
हम सों ते रारि ठानी अब कूबरी मिठानी है॥