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ख़्वाब रातों में जब अधजगा बाँधिए / पूजा बंसल
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ख़्वाब रातों में जब अधजगा बाँधिए
सुब्ह तामीर में तब खुदा बाँधिए
दर्द आँसू तड़प बेबसी बेकली
अब जो था आपका सब मेरा बाँधिए
करवटों में अगर मैं न टकराऊँ तो
चुभती सिलवट में इक रतजगा बाँधिए
रोज़ मुमकिन नहीं तारे का टूटना
मेरी मन्नत पे सूरज उगा बाँधिए
बादवानी सही मेरी कश्ती मगर
नाख़ुदा के इशारे हवा बाँधिए
होके ख़ामोश गर इक नदी रुक गई
फिर न जायज़ सही जलजला बाँधिए
दीजिए रुख़सती अपनी दहलीज़ से
गाँठ में इक शगुन का सवा बाँधिए
अब सफ़र आख़िरी है तो जल्दी नहीं
दूसरा भी ग़लत इक पता बाँधिए