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झाँकते चाँद से तो शरारत करूँ / पूजा बंसल
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झाँकते चाँद से तो शरारत करूँ
बंद कमरे को कैसे मगर छत करूँ
दर्द तो है मुहब्बत में बेहद मुझे
बस नदामत करूँ या शिकायत करूँ
ज़िन्दगी कर रही अब यहीं इल्तिजा
इससे ज़्यादा न मैं तेरी आदत करूँ
क्या सही क्या ग़लत क्या करूँ सोचकर
छोड़कर गफ़लतें बस मुहब्बत करूँ
यूँ तड़पने से होगा भी क्या फ़ायदा
दिल का काग़ज़ उठा कर उन्हें ख़त करूँ