भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 1 / गिरिराज कुवँरि
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण
अद्भुत रचाय दियो खेल देखो अलबेली की बतियाँ।
कहुँ जल कहुँ थल गिरि कहूँ कहूँ कहूँ वृक्ष कहूँ बेल॥
कहूँ नाश दिखराय परत है कहूँ रार कहूँ मेल।
सब के भीतर सब के बाहर सब मैं करत कुलेल॥
सब के घट में आप बिराजौ ज्यों तिल भीतर तेल।
श्री ब्रजराज तुही अल बेला सब में रेला पेल॥