भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न दर्द उठता है दिल में न आह भरते हैं / मेहर गेरा

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:02, 29 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर गेरा |अनुवादक= |संग्रह=लम्हो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
न दर्द उठता है दिल में न आह भरते हैं
तुम्हारी याद में ऐसे भी दिन गुज़रते हैं

ये बे-पनाह अंधेरे निगल न जाएं उन्हें
सुना है अहले-जहां रौशनी से डरते हैं

उभरने लगते हैं माज़ी की सिलवटों से नकूश
कभी जो ज़िक्र तुम्हारा किसी से करते हैं

बहार हो कि खिज़ा मौसमों की क़ैद नहीं
निखरने वाले हर इक रंग में निखरते हैं