बड़ा ही अजब देखो संसार है ।
यहाँ जीत भी बन गयी हार है।।
नहीं पाप मन से भी जिसने किया
वही आज सब का गुनहगार है।।
भड़कती हैं हिंसा की चिंगारियां
हुआ हर बशर आज लाचार है।।
बुझाने लगी हैं दिया आँधियाँ
किया दीप ने किन्तु प्रतिकार है।।
लिये पीर बाजार में आ गये
नहीं कोई इसका खरीदार है।।
उठो दीप विश्वास का बाल दो
वही तो जमाने को दरकार है।।
कहा 'ना' मगर इस तरह हँस दिया
कि जैसे किया उस ने स्वीकार है।।