भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं

ज़रा सा वक़्त खुलने में लगेगा
मेरे अशआर में गहराइयाँ हैं

मेरी ख़ातिर नहीं फुरसत ज़रा भी
भला ऐसी भी क्या मजबूरियाँ हैं

मैं शाइर हूँ मेरे हिस्से की दौलत
फ़क़त ये दाद और ये तालियाँ हैं

मुकम्मल हो गयी है अपनी बाज़ी
‘अजय’ अब चलने की तैयारियाँ हैं