भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:49, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है
जो नफ़रत सिखाये वो इंसां बुरा है

सियासत में हरगिज़ न इन को घसीटो
न गीता बुरी है, न कुरआं ़ बुरा है

बिना कुछ किये ही मिले कामयाबी
ये हसरत बुरी है ये अरमां बुरा है

हुनर सीख लो मुस्कुराने का ग़म में
हमेशा ही रहना परेशां बुरा है

सफ़र जिं़दगानी का छोटा है ‘अज्ञात’
जुटाना युगों तक का सामां बुरा है