भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम को वो अपनी तमन्ना नहीं होने देते / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनु जसरोटिया |अनुवादक= |संग्रह=ख़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम को वो अपनी तमन्ना नहीं होने देते
हम पे आंचल का भी साया नहीं होने देते

ये बुरे काम हैं इन्सां के जो अक्सर उसको
एक इन्सां से फ़रिश्ता नहीं होने देते

अश्क को पलकों ही में रोक लिया करते हैं
हम कभी क़तरे को दरिया नहीं होने देते

कुटिया वाले नहीं भाते हैं अमीरों को कभी
उन के सपनों को वो पूरा नहीं होने देते

साथ रखते हैं तेरी याद सजा कर इस में
अपने दिल को कभी तन्हा नहीं होने देते

कैसे बेदर्द हुआ करते हैं तूफ़ां अक्सर
पार दरिया के सफी़ना1 नहीं होने देते