भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूठने वाला न लौटा फिर कभी / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनु जसरोटिया |अनुवादक= |संग्रह=ख़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रूठने वाला न लौटा फिर कभी
रंग महफ़िल में न बरसा फिर कभी
शहृर भर में ऐसी रुसवाई हुई
घर से बाहर वो न निकला फिर कभी
जिस को नज़रों से गिराया एक बार
उसके बारे में ना सोचा फिर कभी
दे रहा था दस्तकें जो देर से
वक़्त वो जा कर ना लौटा फिर कभी
दिल में उभरा था जो ज्ज़बा प्यार का
बन के शो’ला वो भड़कता फिर कभी
रूह है बैचैन जिसके वास्ते
वे हमें आवाज़ देता फिर कभी
गिरने वालों का यही अन्जाम है
गिर गया जो, वो ना संभला फिर कभी
काश मौजूदा सदी का आदमी
बीते कल सा मुस्कुराता फिर कभी