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हम कवि और हमारी कविताएँ / रवि कुमार

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हम सभी संवेदनशील हैं
विचारशील भी
हमारा सौन्दर्यबोध
हर कुरूपता पर हमें द्रवित करता है
हमारे पास शब्द हैं
और कहने की बाजीगरी भी
हम लिख लेते हैं कविता
पर हमारी बदनसीबी
हमारा समय क्रांतिकारी नहीं है
यह इस नपुंसक दौर की
नियति ही है शायद
कि हमारी कविताएं
परिवर्तन का औजार बनने की बजाए
श्रेष्ठता बोध की तुष्टि का
जरिया बनकर उभरती हैं
पूंजी को चुनौती देती
हमारी कविताएं
धीरे-धीरे तब्दील होती जाती हैं
हमारी सबसे बड़ी पूंजी में
व्यवस्था के ख़िलाफ़ लिखी
अपनी इन्हीं कविताओं के जरिए
हम इसी व्यवस्था में
बनाना चाहते हैं अपना मुकाम
किसी प्रकाशक
या मूर्धन्य आलोचक की कृपा-दृष्टि
को टटोलते हम
श्रेष्ठ कवियों की गिनती में
शामिल हो जाना चाहते हैं